Ram temple controversy : मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा सही या ग़लत

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संसार का प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर की सत्ता को किसी ने किसी रूप में स्वीकार करता है भले ही वह प्रकृति के रूप में स्वीकार करें अथवा ईश्वर के रूप में स्वीकार करें कोई उसे निराकार मानता है कोई साकार रूप में पूजा करता है । जैसे कि आज अयोध्या में भगवान श्री राम लला की साकार रूप में मूर्ति प्रतिष्ठा की जा रही है। ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करते हुए धर्म के अनुयाई अपना अपना मत प्रस्तुत करते हैं । मुख्यतः चार धर्म स्वीकार किए गए हैं । उनमें से सनातन धर्म सर्वोपरि है वह भी ईश्वर की सत्ता को साकार रूप में एवं निराकार रूप में स्वीकार करता है जो निराकार रूप में स्वीकार करते हैं वह परम ज्योति पुंज को अपना आराध्य देव मानते हैं । लेकिन साकार रूप में भगवान के अनेकों रूपों को पूजा जाता है । कोई भगवान शंकर का उपासक है तो कोई विष्णु को पूजता है । सनातन धर्म के अनुसार जब धरती पर पाप की वृद्धि होती है तो भगवान किसी न किसी रूप में अवतार ग्रहण करते हैं । शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु के 24 अवतारों का वर्णन मिलता है । इस पृथ्वी का उद्धार करने के लिए साधु, संत ,गाय, देवता और ब्राह्मण की रक्षा के लिए धर्म अनाचार को मिटाने के लिए भगवान इस मृत्यु लोक में जन्म लेते हैं । गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं विप्र धेनु सुर  संत हित लिन्ह मनुज अवतार । निज इच्छा निर्मित तनु माया गुण गोपार ।‌। भक्त अपने दैहिक दैविक और भौतिक संताप को दूर करने के लिए ईश्वर की साकारात्मक पूजा करते हैं । भगवान की प्रतिमा को घर में अथवा मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कर स्थापित करते हैं । फिर अपने आराध्य देव को इस प्रकार पूजते हैं । जैसे वह अपने घर के माता-पिता एवं बुजुर्गों की पूजा करते हैं। जब व्यक्ति अपने तन मन धन से ईश्वर की आराधना करता है तो ईश्वर भी व्यक्ति के प्रत्येक कार्य को संपन्न करते हैं । गीता में भगवान कहते है। अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ।। आज हम भगवान राम के अयोध्या में आने की खुशी में भगवान की मूर्ति प्रतिष्ठा में क्या सही है क्या गलत है ऐसा विचार करेंगे 


प्रतिमा की आवश्यकता क्यों:- 

दोस्तों अब मैं आपको बताता हूं कि  भगवान की प्रतिमा की आवश्यकता क्यों पड़ी जब कि वेदों में निराकार रूप में भगवान की आराधना का उल्लेख मिलता है जिसके अनुसार हमारे ऋषि, मुनि, महात्मा निराकार की उपासना करते थे परंतु साधारण लोग अपने मन को एकाग्र ना कर पाए इसलिए हमारे ऋषियों ने भगवान के अवतारों की प्रतिमाओं का उल्लेख किया । सर्वप्रथम ज्योतिपुंज  शिवलिंग की स्थापना हुई । फिर अलग-अलग देवताओं की प्रतिमाएं स्वीकार की गई क्योंकि लोगों के मनोभाव को व्यक्त करने के लिए ऐसा करना अनिवार्य था । अलग-अलग उद्देश्य से अलग-अलग देवता की पूजा करना जिससे लोगों का मन भगवान की आराधना में प्रवृत्त होने लगा । और लोग अपने कार्य को सिद्ध करने के लिए अपने इष्ट देव की आराधना करने लगे । परंतु उनके मनोभाव में अभी भी शंका बनी हुई थी कि यह मूर्ति धातु की है, पत्थर की है अथवा लकड़ी की है । इसी समस्या को दूर करने के लिए शास्त्रों में मूर्ति में प्राणों की आवश्यकता महसूस की गई क्योंकि निर्जीव वस्तु के ऊपर श्रद्धा एवं विश्वास उत्पन्न नहीं होता। सजीव वस्तु का ध्यान अधिक रखा जाता है इसलिए हमारे ऋषियों ने प्रतिमाओं में प्राण प्रतिष्ठा से प्रतिमाओं को जागृत किया जैसा कि अयोध्या में राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा हो रही है।  इसी कारण हमारे शास्त्रों में मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा का उल्लेख मिलता है। लोग प्रतिमा को साकार देवता स्वीकार करते हैं। 

                                                                                                                                 

कैसे होती है मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा:-

अब हम बात करते हैं कि मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा कब और कैसे होती है । दोस्तों हमारे शास्त्रों में उल्लेख आता है की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करने से पहले भवन का निर्माण किया जाता है । उसी के मध्य नजर इस समय जो मठाधीश है वह इसी बात को लेकर चर्चा का विषय बना रहे हैं कि अभी तक मंदिर तैयार नहीं हुआ और मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है । दोस्तों शास्त्रों के अनुसार जब तक मन्दिर का शिखर तैयार नहीं होता तब तक उस भवन में मूर्ति स्थापना नहीं होती क्योंकि शिखर को सुमेरु पर्वत माना जाता है ।  उस के बिना मन्दिर अपूर्ण होता है। यह भी एक मत शास्त्रों ने स्वीकार किया है। लेकिन दोस्तों इसके अलावा भी बहुत सारी बातों पर मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा करते समय ध्यान दिया जाता है जैसा कि योग स्थान एवं योग मुहूर्त । मत्स्य प्राण के अनुसार :- चैत्रे फाल्गुने वापि ज्येष्ठे वा माधवे तथा। माघे वा सर्वदेवानां प्रतिष्ठा शुभदा भवेत्।। इन महीनों में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है । लेकिन हेमाद्रि के अनुसार भगवान विष्णु की प्रतिष्ठा माघ के महीने में नहीं की जाती । -: माघे कर्तुर्विनाश: स्यात् फाल्गुने शुभदा भवेत् :- इसलिए माघ के महीने में भगवान विष्णु के अंशावतारों की प्रतिमाओं की स्थापना नहीं की जाती । फिर तिथियां का विचार आता है । जिस में चौथ, नवमी,चौदश एवं अमावस्या को छोड़ कर अन्य तिथियां, मंगल एवं शनिवार को छोड़कर अन्य वारों में, ज्येष्ठा, श्रवण, रोहिणी, तीनों उत्तरा,हस्ता, अश्विनी, रेवती, पुष्प, मृगशिरा, अनुराधा, और स्वाति नक्षत्रों में शुभ मुहूर्त में गंगादि नदियों के जल से वैदिक विधि विधान से पूजन के द्वारा परमात्मा की प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है। 


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राम मंदिर विवाद पर हमारा मत :- 

यद्यपि मठाधीशों के अनुसार मंदिर निर्माण अभी पूरा नहीं हुआ तो मूर्ति प्रतिष्ठा नहीं होनी चाहिए लेकिन धर्म शास्त्रों के अनुसार एवं लोगों की आस्था को ठेस न पहुंचे इसलिए मठाधीशों को कोई बीच का रास्ता निकालना चाहिए । क्योंकि मंदिर का गर्भ गृह पूर्ण हो चुका है जिसमें राम लला की मूर्ति स्थापना की जा सकती है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार शिखर की पूजा एवं स्थापना बाद में भी की जा सकती है । क्योंकि मंदिरों का कार्य है कभी भी पूरा नहीं होता । हर समय कोई ना कोई कार्य मंदिर में चलता रहता है । हमारे मत के अनुसार राम लला की मूर्ति प्रतिष्ठा होनी चाहिए क्योंकि लोगों की भावनाओं को देखते हुए मठाधीशों को भी अपना मत और निमंत्रण स्वीकार कर लेना चाहिए । क्योंकि हमारे शास्त्रों में समय और परिस्थिति के अनुसार बदलाव किए जाते हैं । जैसा कि वेद मन्त्रों को रात्रि में उच्चारित नहीं किया जाता । लेकिन हम शिवरात्रि पूजा एवं महालक्ष्मी की पूजा या रात्रि के विवाह में वेद मन्त्रों का उच्चारण करते आए हैं ।  धन्यवाद।

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