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जब व्यक्ति कोई कार्य प्रारंभ करता है और उसकी सफलता के लिए यत्न करता है परंतु कई बार में कार्य संपन्न नहीं हो पता क्योंकि जो व्यक्ति का साहस है वह उसका साथ नहीं देता मन में एक डर बना रहता है कहीं मैं असफल न हो जाऊं कई बार तो व्यक्ति की मनोस्थिति इतनी बिगड़ जाती है कि उसे लगता है मेरे कारोबार पर किसी भूत प्रेत की छाया है । मन की स्थिति विचलित हो जाती है। मन का भय उसे कोई भी कार्य करने नहीं देता । मन की आशंकाएं उसे आगे बढ़ने नहीं देती । भय के कारण कार्य प्रारंभ ही नहीं करता । किसी का किया कराया अथवा मन की दुविधाएं कार्य को सफल नहीं होने देती । जब इस पर विचार किया जाता है के भूत प्रेत या कोई ऐसी छाया जो हमारे कार्य में बाधा उत्पन्न करती है ऐसा कुछ है या नहीं । आज हम इसका विश्लेषण करेंगे कि कोई छाया जो आपको सता रही है कहीं वह आपके मन की उपज तो नहीं । जब मन की स्थिति स्थिर नहीं होती तो ऐसी उलझने आती हैं कई बार तो वह मनोरोग के कारण कारोबार में अधिक लाभ प्राप्त करना चाहता है परंतु लाभ न मिलने के कारण मन में बेचैनी हो जाती है और कार्य में मन नहीं लगता कि कोई भूत प्रेत मेरे काम को रोक रहा है बाधाएं उत्पन्न हो रही है । आज हम विचार करेंगे की मन के भय का मुख्य कारण क्या है ।
शास्त्र मत के अनुसार भूत प्रेत:-
* जिस समय इस सृष्टि का प्रादुर्भाव हुआ तो भगवान शंकर को सृष्टि रचना का कार्य सौंपा गया। शंकर जी ने भूत प्रेत आदि मानस सृष्टि की रचना की । जो शंकर जी के मन: स्थिति से उत्पन्न हुए । भूत प्रेत का विकराल रूप एवं शरीर देखकर सभी देव भयभीत हो गए । त्रिगुणात्मक ज्योति स्वरूप भगवान विष्णु ने शंकर जी की मन सृष्टि को रोकने का आदेश दिया । उसके बाद ब्रह्मा जी ने मानस पुत्र सनत आदि एवं ऋषियों की उत्पत्ति की फिर मनु शतरूपा से सारी सृष्टि का प्रादुर्भाव होता । वही भूत प्रेत जो भगवान शंकर के गण कहलाएं। जब व्यक्ति कोई मानसिक अपराध करता है तो वह अपराध का दंड देने के लिए नियुक्त किए गए हैं। यही भूत प्रेत व्यक्ति को कई तरह से पीड़ित करते हैं । जब व्यक्ति अल्पायु में अथवा अकाल मृत्यु में मर जाता है तो उसकी शेष आयु भोगने के लिए मानसिक शरीर की रचना शास्त्रों में कहीं गई है। वह मानसिक रोगों की उत्पत्ति करती है । इसी कारण शास्त्रों में भूत प्रेत का उल्लेख मिलता है ।
मनोविज्ञान के अनुसार भूत प्रेत:-
* अगर हम मनोविज्ञान पर विचार करते हैं तो मनोविज्ञान के अनुसार मन की तीन स्थितियां होती हैं । अचेत मन,सचेत मन और अर्ध चेत मन। अचेत मन में व्यक्ति कोई भी कार्य संपन्न नहीं कर सकता । इस अवस्था में (निद्रा में व्यक्ति का रहना) अपने कार्य से दूर होता है जिस कारण कार्य संपन्न नहीं होता । दूसरी सचेत अवस्था इसमें व्यक्ति का मन सचेत रहता है । वह प्रत्येक कार्य को दक्षता से करता है इसलिए कार्य में अच्छी सफलता प्राप्त होती है उसे समय उसके मन में कोई भय नहीं होता । और ना ही भूत प्रेत की छाया उसे सताती है । कार्य में मन लगने के कारण कार्य में सफलता भी अच्छी मिलती है । तीसरी अवस्था अर्ध चेत मन की है । इसमें व्यक्ति का मन दो भागों में बांट जाता है एक तो अचेत मन, दूसरा सचेत मन। कुछ कार्य तो चेतनता में करता है और कुछ कार्य में अर्ध चेत मन प्रधान हो जाता है । इसी कारण वह भूत प्रेत की कल्पना करने लगता है अचेत अवस्था में किया गया कार्य ध्यान में नहीं रहता इसीलिए कार्य में गलतियां अधिक होती हैं और गलतियों के कारण धन का नाश होता है और व्यक्ति का व्यवहार भी दुर्व्यवहार में बदल जाता है । जिसके कारण लोग उसे दूर जाना पसंद करते हैं और कार्य भी संपन्न नहीं हो पाता, कारोबार में बाधा उत्पन्न हो जाती है । व्यक्ति को एहसास होता है कहीं उसका कार्य को किसी ने बांध तो नहीं दिया । मन में किसी ओपरी छाया का ख्याल आता है। वह अपने मन में भूत प्रेत की कल्पना करने लगता है । इसी कारण वह मानसिक रूप से बीमार हो जाता है। भूत प्रेत उसे दिखाई देते हैं। वह एक काल्पनिक दुनिया में चला जाता है । इसी कारण भूत प्रेत का प्रभाव व्यक्ति पर दिखाई देता है ।
ज्योतिष के अनुसार भूत प्रेत:-
* ज्योतिष के अनुसार जब केंद्र में क्रूर ग्रह और त्रिक में सौम्य ग्रह आ जाते हैं तो व्यक्ति को मानसिक पीड़ा देते है । जब राहु लग्न में होता है और उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि ना हो तो व्यक्ति मानसिक पीड़ा से युक्त हो जाता है । जब पंचम भाव में क्रूर ग्रह (सूर्य मंगल शनि राहु एवं केतु) बैठते हैं तो वह बुद्धि का नाश कर देते हैं । व्यक्ति की सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती है तो वह मानसिक पीड़ा से पीड़ित हो जाता है । जब कुंडली में क्षीण चंद्रमा या नीच राशि का चंद्रमा केंद्र में अथवा त्रिकोण में विराजमान हो तो व्यक्ति मानसिक पीड़ा से पीड़ित हो जाता है । जिसके कारण व्यक्ति के मन में भूत प्रेत जन्म लेते हैं । और व्यक्ति का व्यवहार उग्र हो जाता है । जिसका प्रभाव परिवार के अन्य सदस्यों पर दिखाई देता है । मानसिक पीड़ा के कारण व्यक्ति का जीवन नर्क बन जाता है । कभी तो वह बार-बार हाथ धोता है । एक ही गलती को बार-बार करता है । कई बार ज्यादा मेहनत करने पर भी जब फल की प्राप्ति नहीं होती तो व्यक्ति की मनोदशा विचलित हो जाती है और वह मानसिक रोग से पीड़ित रहता है । जब दशम भाव पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि अथवा युति हो तब व्यक्ति के कारोबार में हानी के कारण वह मानसिक पीड़ा को प्राप्त होता है। जब केंद्र में नीच का मंगल विराजमान होता है तो व्यक्ति में साहस की कमी आती है जिसके कारण वह है प्रेत पीड़ा का सामना करता है । जब केंद्र अथवा त्रिकोण में नीच का शनि विराजमान हो तब व्यक्ति अपने शरीर में गुप्त रोग के कारण मानसिक पीड़ा को सहन करता है । फल स्वरुप उसका ध्यान भूत प्रेत में लग जाता है ।मन में नाना प्रकार के उपद्रव जन्म लेते हैं । वही उपद्रव व्यक्ति के विनाश का कारण बनते हैं । इसलिए जब केंद्र अथवा त्रिकोण में पाप ग्रह बैठे हो और किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो व्यक्ति भूत प्रेत से पीड़ित होकर अपना जीवन यापन करता है ।
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सावधानियां एवं उपाय:-
* व्यक्ति को मनोरोगों से दूर रहने के लिए अपने दिनचर्या में कुछ बदलाव करने होंगे । यदि व्यक्ति अपने कार्य को सुचारू रूप से करता है तो निश्चय ही वह मानसिक रोगों से दूर हो जाता है । जब व्यक्ति अपने वित्त से अधिक कार्य करता है और उसमें नुकसान हो जाए तो व्यक्ति मानसिक रोग से पीड़ित हो जाता है । इसलिए व्यक्ति को अपने क्षमता अनुसार कार्य करना चाहिए । खाने पीने का ध्यान रखना चाहिए अच्छी निद्रा लेनी चाहिए रात को जल्दी सोना एवं सुबह जल्दी उठना व्यक्ति की उन्नति के लिए अनिवार्य है । व्यक्ति को ईश्वर में आस्था रखनी चाहिए जिससे व्यक्ति के मन की दुविधा खत्म हो जाती है । व्यवहार को नरम करें बड़ों का सम्मान करें । कोई भी कार्य करने से पहले किसी विशेषज्ञ की सलाह ले।
१) जन्म कुंडली के अनुसार नेष्ट ग्रहों का जाप एवं दान करें ।
२) राहु का जाप एवं दान मानसिक रोगों को दूर करता है ।
३) तृतीयेश को बलवान करने के लिए तृतीयेश का रत्न धारण करें ।
४) मनोरोग से पीड़ित होने के बाद महामृत्युंजय आदि का जाप करवाएं।
५) गुरु मंत्र का जप एवं बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त करें ।
६) कारोबार के विघ्नों को दूर करने के लिए माता दुर्गा की उपासना करें ।
७) किसी योग्य ब्राह्मण से जन्मपत्री का विचार करवाएं।
सारांश:-
* यद्यपि मनुष्य का व्यवहार एवं कार्य क्षमता उसे उन्नति देने वाली होती है जब वह अपनी किसी गलती के कारण इसमें असफल हो जाता है तो उसे मनो रोग पीड़ित करते हैं । जब व्यक्ति पर राहु आदि क्रूरु ग्रहों की दशा या अंतर दशा आती है तो व्यक्ति के कारोबार एवं मन पर उसका प्रभाव आता है । उसमें हानि होने के कारण व्यक्ति मनो रोग से पीड़ित हो जाता है । यह उल्लेख हमारे शास्त्रों के अनुसार है व्यक्तिगत रूप से हम भूत प्रेत का समर्थन नहीं करते । और ना ही हम इसकी व्याख्या करते हैं । यह एक मानसिक पीड़ा है जिसका उल्लेख इस ब्लॉग में किया गया है । व्यक्तिगत जानकारी के लिए आप हमारे केंद्र से संपर्क कर सकते हैं ।