Kundli Yog
सनातन धर्म के अनुसार जब बालक का जन्म होता है तो उसका जन्म टेवा तैयार किया जाता है । कुंडली के हिसाब से ग्रहों की स्थिति जानी जाती है। जन्म के समय कुंडली में अनेकों योग उत्पन्न होते हैं जिनमें से कुछ लाभकारी एवं आनंद को देने वाले होते हैं परंतु कुछ योग कष्टकारी एवं निकृष्ट कहे जाते हैं । कुछ बचपन में फल देते हैं कुछ युवा अवस्था में कुछ वृद्धावस्था में और कुछ अपनी दशा आने पर फल देते हैं । जब लड़का या लड़की युवा हो जाते हैं तो उनका जीवन साथी खोजना प्रत्येक माता-पिता का कर्तव्य होता है । माता-पिता अपने बालक अथवा बालिका के लिए योग वर या वधू की खोज करते हैं । हर माता-पिता चाहते हैं कि मेरे लड़के या लड़की के लिए अच्छा परिवार मिले अच्छे गुणों से युक्त वर या वधू प्राप्त हो । परन्तु कई बार लड़का या लड़की मांगलिक होने से विवाह में देरी होती है । जब कुंडली मिलान करते हैं तो शास्त्रों के अनुसार मांगलिक लड़के की शादी मांगलिक लड़की से ही करनी चाहिए । कई बार देखा गया है कि अगर मांगलिक लड़के की शादी गैर मांगलिक से की जाए तो दोनों का वैवाहिक जीवन सुखमय व्यतीत नहीं होता। छोटी-छोटी बातों को लेकर दोनों में तकरार हो जाती है । कई बार यह तकरार इतनी बढ़ जाती है की दोनों अलग-अलग रहना पसंद करते हैं अर्थात विवाह टूट जाता है । कुंडली मिलान न होने से या मांगलिक दोष होने से किसी एक के साथ है अप्रिय घटना घट जाती है तो आज हम इस पर विचार करेंगे कि यदि एक मांगलिक हो और दूसरा ना हो तो हमें क्या उपाय करने चाहिए ।
मांगलिक दोष कब और कैसे:-
जब हम जन्म कुंडली में ग्रह स्पष्ट के अनुसार ग्रह निर्माण करते हैं तो उस समय मंगल की स्थिति जानी जाती है। अगर मंगल लग्न , चौथे, सातवें, आठवें या बारहवें भाव में स्थित होता है तो बालक या बालिका को मंगलीक माना जाता है। शास्त्र कहते हैं ( लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे। कन्या भर्तृविनाशाय भर्ता कन्या विनाशद: ) अगर उक्त स्थान पर लड़के के मंगल बैठा हो तो वह लड़की के लिए सुख में कमी, क्लेश, शारीरिक कष्ट ,खर्च वृद्धि और संबंधों में तनाव उत्पन्न करता है । अगर लड़की के हो तो वह लड़के के लिए सुख नाशक कही गई है । इसीलिए हमारे शास्त्रों में विवाह के पूर्व कुंडली मिलान में मांगलिक दोष का विशेष रूप से अध्ययन करना चाहिए । मंगल जब लग्न में होता है तो शरीर कष्ट देता है । जब यह चौथे होता है तो सुख में कमी करता है । सातवें वैवाहिक जीवन में वैचारिक मतभेद उत्पन्न होते हैं। जब आठवें होता है तो मान सम्मान एवं आयु में विघ्न उत्पन्न करता है । मंगल द्वादश स्वभाव में खर्च एवं क्लेश को बढ़ाने वाला कहा गया है । कि अगर आपकी कुंडली में मांगलिक दोष भंग नहीं होता तो अवश्य ही आपके जीवन में कष्ट आ सकते हैं । आप कुंडली मिलान के बाद ही वैवाहिक संबंधों के बारे में विचार करें ।
* अगर मंगल प्रथम भाव में विराजमान होता है तो व्यक्ति के लिए कष्टकारी कहा गया है क्योंकि लग्न में मंगल क्रोध को बढ़ाने वाला है। शरीर में रक्त विकार उत्पन्न करता है । सुख में कमी करता है । सातवीं दृष्टि से सातवें भाव को देखने के कारण वह जीवनसाथी के साथ कलह देता है। वैचारिक मतभेद उत्पन्न होता है। आठवीं दृष्टि से आयु भाव को देखने के कारण गुप्त रहस्य एवं कारोबार के भेद खुल जाते हैं । जिस से मान सम्मान में कमी आती है और व्यक्ति का जीना मुश्किल हो जाता है । ( लग्ने क्रूरा: क्षयं करा:)
* जब मंगल चौथे होता है तो व्यक्ति के लिए संपत्ति नाश भूमि एवं जायदाद के विवाद को उत्पन्न करता है । माता को कष्ट देता है । वाहनादि से भी कष्ट की प्राप्ति होती है । जीवनसाथी से लेन देन को लेकर झगड़ा रहता है एवं कारोबार में कमी आती है । प्रत्येक कार्य में हानी के योग बनते हैं । व्यक्ति का जीवन कष्टमय हो जाता है ।
* जब मंगल सातवें होता है तो पति-पत्नी के जीवन में तकरार उत्पन्न हो जाती है । दोनों के स्वभाव में भिन्नता पाई जाती है एक दूसरे की बात सुहाती नहीं । छोटी-छोटी बातों से क्लेश है बढ़ता है चौथी दृष्टि से कारोबार को देखने के कारण विवाह के बाद नौकरी में विघ्न एवं कारोबार में कमी आती है । सातवीं दृष्टि से लग्न को देखने के कारण स्वभाव में गुस्सा, रक्त की कमी एवं आपसी तालमेल में भी उलझने आती हैं । आठवीं दृष्टि धन भाव पर होने से कुटुंब से विरोध का सामना करना पड़ता है धन-धान्य की कमी आती है । व्यक्ति का जीवन नरक बन जाता है।
* जब मंगल आठवें भाव में होता है तो दुर्घटनाओं से भय बना रहता है । कारोबार भी अच्छा नहीं रहता । कुटुंब से विरोध होता है मित्र भी धोखा देते हैं । भाइयों से अनबन रहती है । गुप्त शत्रु प्रहार एवं गुप्त रोगों का भय बना रहता है । व्यक्ति कोई भी बात छुपा कर नहीं रख पाता जिस कारण पति-पत्नी में झगड़े होते हैं । अगर किसी क्रूर ग्रह की दृष्टि आ जाए तो यह कष्ट और भी ज्यादा बढ़ जाता है । वैवाहिक जीवन नरक बन जाता है ।
* जब मंगल द्वादश भाव में होता है तो शैय्या सुख में कमी करता है। । अधिक खर्च होने के कारण घर में क्लेश रहता है । चौथी दृष्टि से भाई बहनों में झगड़ा रहता है प्रेम में कमी रहती है सातवें दृष्टि रोग और शत्रु को बढ़ाने वाली है । आठवीं दृष्टि से सप्तम भाव को देखने के कारण व्यवहार में भिन्नता पाई जाती है । गुप्त रोगों का शिकार होने से वैवाहिक जीवन नर्क बन जाता है ।
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सावधानियां एवं उपाय :-
१) जब लड़का अथवा लड़की मांगलिक होते हैं तो सर्वप्रथम हमें उनकी शादी मांगलिक से ही करवानी चाहिए शास्त्र कहते हैं (कुज दोषवती देया कुजदोषवते किल । नास्ति दोषो न चानिष्टं दम्पत्यो: सुखवर्धनम्।।) अपने क्रोध पर अंकुश लगाए और जल्दबाजी में कोई फैसला ना ले ।
बड़ों का आदर करना और उनकी आज्ञा में रहना आपके लिए लाभकारी सिद्ध होगा ।
२) यदि मंगल पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि ना हो । तो विवाहित जीवन नर्क बन जाता है । वहां पर मंगल जप एवं दान करना उचित कहा गया है ।
३) वैचारिक मतभेद को नजर अंदाज करना होगा ।
४) भगवान शंकर की उपासना एवं महामृत्युंजय आदि जप लाभकारी रहेगा ।
सारांश:-
जब लड़का या लड़की मांगलिक होते हैं तो सर्वप्रथम उनका विवाह मांगलिक लड़का या लड़की से ही करना चाहिए । परंतु कुछ आचार्य का मत है कि यदि गुरु की पूर्ण दृष्टि हो तो मांगलिक लड़की का रिश्ता गैर मांगलिक लड़के से भी किया जा सकता है । (न मंगली पश्यति यस्य जीवा: ) कुछ आचार्य कहते हैं कि यदि लड़का मांगलिक है और लड़की के उन्ही भागों में शनि बैठे हैं तो मांगलिक दोष समाप्त हो जाता है । (यामित्रे यदा सौरि लग्ने हुबुके तथा। अष्टमे द्वादशे चैव भौम दोषो न विद्यते।) लेकिन यहां पर हमारा विचार है की मंगलीक लड़के की शादी मांगलिक लड़की से ही करनी चाहिए अन्यथा दोनों का जीवन नर्कमय हो जाता है । आगे आप खुद समझदार हैं जैसा आपको अच्छा लगता है आप वैसा कर सकते हैं । हमारा विश्लेषण आपको मांगलिक दोष के बारे में बताना था । उसका अगर शास्त्रों में परिहार नहीं मिलता तो आप वैवाहिक सुख को प्राप्त नहीं कर सकते । हो है सोई जो राम रची रखा। आपका वैवाहिक जीवन सुखमय व्यतीत हो यही कामना है।