Astrology Shapit Dosh : श्रापित दोष से जीवन नर्क

Kundli Yog



श्रापित दोष  उत्पत्ति:-

दोस्तों अक्सर देखा गया है कि कई बार व्यक्ति कम मेहनत करने पर भी अधिक सफलता प्राप्त कर लेता है परंतु कई बार तो उस का गुजारा बड़ी मुश्किल से होता है उसे दो बखत का भोजन भी आसानी से प्राप्त नहीं होता है।  मानो किसी ने उसे श्रापित कर दिया है ‌ । जिस कारण व्यक्ति का जीवन नर्क बन गया है। ना ही कारोबार है,ना ही उत्तम शिक्षा,ना वैवाहिक सुख,ना संतान और ना ही कोई सुख-सुविधा है।फिर वह अपने कर्मों को कोसता है। कभी ईश्वर को दोष देता है और कभी समय को दोषी ठहराता है परन्तु उसे क्या पता कि यह दशा उस की कुंडली में विराजमान शनि राहु के संयोग से उत्पन्न श्रापित दोष के कारण उत्पन्न हुई है ! कभी माता से ,कभी पिता से ,कभी पितरों से और कभी किसी देवी देवता से श्रापित हो कर आनंदमय जीवन को जिस ने नर्क बना दिया। आज हम जानेंगे कि यह श्रापित दोष क्या है। दोस्तों हमारे शास्त्रों में शनि देव को न्याय का देवता स्वीकार किया गया है। वह छोटा-सा अन्याय भी बर्दाश्त नहीं करते झटसे कुपित हो जातें हैं और राहु को उपद्रवी कहा गया है वह शीघ्र ही कोई न कोई उपद्रव करते ही रहते हैं परन्तु जब शनि और राहु इकट्ठे होते हैं तो विनाश को प्राप्त करते हैं। कुंडली के सभी शुभ योगों का नाश कर देते हैं। जिस जिस भाव से संबंध रखते हैं उस उस भाव की हानि करते हैं। व्यक्ति की सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती है जिस कारण व्यक्ति सही निर्णय ही नहीं ले सकता। गलत निर्णय के कारण वह नुकसान कर लेता है। मानसिक रूप से टूट जाता है। आर्थिक तंगी से परेशान हो कर दुखी होता हुआ अपने आप को व्यसनों में, अनाचार में लगा देता है ! 

* दोस्तों यह योग शास्त्रों के अनुसार हमारे पिछले जन्मों के पापों के प्रभाव से उत्पन्न होता है। जब हम चपलता के कारण किसी व्यक्ति,जीव, जन्तु एवं प्राणी को निर्दयता से दुखी करते हैं बिना किसी अपराध के उसे सताते हैं तो उस जीव जन्तु की आत्मा दुःख पाती है और दुखी आत्मा की बद्दुआ हमारे इस सुखी जीवन को नर्क बना देती है। इसी कारण से हमारी जन्म कुंडली में शनि राहु के संयोग से उत्पन्न श्रापित दोष की उत्पत्ति होती है। जो हमारे सभी अच्छे योगों से उत्पन्न शुभ फल को भी नष्ट कर देती है और हमें अच्छा फल सुखी जीवन प्राप्त ही नहीं होता। हमें नर्क भोगने पर मजबूर कर देता है। अब हम विस्तार से जानेंगे कि श्रापित दोष किन किन कारणों से व्यक्ति को दुखी करता है।

पितर या पितृ श्रापित दोष:-जब व्यक्ति पिता की आज्ञा पालन नहीं करता ,पिता से द्वेष करता है तो व्यक्ति पितृ श्रापित दोष से पीड़ित होता है। जब वह अपने पूर्वजों  (दादा ,दादी,प्रदादा प्रदादी आदि ) का अपमान करता है , श्राद्ध, पिंडदान आदि नहीं करता तो वह पितर श्रापित दोष से पीड़ित होता है । जब शनि राहु दशम भाव में हो और सूर्य नीच का होकर दशम भाव को देखे अथवा दशम भाव में नीच का सूर्य विराजमान होता है तब पितृ श्रापित दोष होता है और जब इन पर मंगल की पूर्ण दृष्टि होती है तो पितर श्रापित दोष होता है। 

* लक्षण:- व्यक्ति कार्य में सफल नहीं होता तो, समाज में न मान सम्मान ,न कारोबार और ना ही कोई नौकरी मिलती है। पितर दोष के कारण वंश वृद्धि नहीं होती और न ही शरीर स्वस्थ रहता है। व्यक्ति मानसिक तनाव, शारीरिक कष्ट एवं सामाजिक परिस्थितियों में घिरा रहता है। दुःख मय जीवन यापन करना उस की मजबूरी बन जाता है। 

* निवारण:- जब पितृ श्रापित दोष के लक्षणों से ज्ञात हो जाये तो उसे अपने सूर्य को बलवान करने के लिए जप दान एवं सूर्य उपासना करनी चाहिए । पिता का मान सम्मान,पितरों की उपासना में लग जाना चाहिए । पितरों का श्राद्ध,पिंडदान आदि शास्त्रोक्त विधि से करने चाहिए । तभी मनुष्य इस पितृ श्रापित दोष से मुक्ति प्राप्त कर अपना सुखी जीवन यापन कर सकता है ।

 

मातृ श्रापित दोष:-व्यक्ति सुख प्राप्ति के लिए संसार में विचरते हुए किसी न किसी कारण से माता को दुखी कर देता है। भले ही वह मानसिक कष्ट हो या शारीरिक पीड़ा । माता की आत्मा पीड़ित होती है फिर भी माता अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य की कामना करती है ।‌ यह जाने अनजाने का किया अपराध  विधाता ( माता का अपमान) को सहन नहीं होता इसीलिए वह पुत्र का सब सुख छीन लेते हैं । माता को दुखी करने के कारण पुत्र को अनेकों कष्टों की प्राप्ति होती है । तब कुंडली में शनि राहु का संयोग चौथे भाव में, चतुर्थेश से संबंध एवं पीड़ित चंद्रमा की युति या दृष्टि से जो योग निर्मित होता है उसे मातृ श्रापित योग कहते हैं।

* लक्षण:- दोस्तों मकान ,वाहन, भूमि जायदाद क्रय विक्रय, सुख साधनों की पूर्ति,संपत्ति नाश एवं संपत्ति का झगड़ा हर समय बना रहता है तो समझ लेना चाहिए कि कुंडली में मातृ श्रापित दोष है । जिस कारण व्यक्ति का जीवन सुख हीन हो जाता है ! 

* निवारण:-सर्वप्रथम माता की सेवा, आदर सत्कार एवं माता का आशीर्वाद लें। सफेद वस्तु का दान एवं चांदी का चंद्र धारण करें । चंद्रमा के मंत्र का जप एवं 8 वर्ष से छोटी कन्या की पूजा करें । सुच्चा मोती सवा आठ रत्ती का धारण करें तो आप इस दोष से मुक्त होकर सुखी जीवन व्यतीत करेंगे ।


स्त्री श्रापित दोष:- जब व्यक्ति किसी स्त्री का अपमान करता है। ईर्ष्या, द्वेष,लोभ या अहंकार के वशीभूत होकर परेशान करता है तो वह स्त्री श्रापित दोष से दूषित हो जाता है और व्यक्ति की सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती है। तब कुंडली में शनि राहु युति सप्तम भाव में हो जाती है। और उस का शुक्र पीड़ित हो जाता है। जब शुक्र नीच का,अस्त,वक्री अवस्था में लग्न या सप्तम भाव में होता है तब स्त्री श्रापित कुंडली का निर्माण होता है।

* लक्षण:- ना वैवाहिक सुख, विवाह में देरी ,अगर किसी कारण से विवाह हो जाता है तो मनमुटाव के कारण तलाक हो जाता है या जीवन साथी मर जाता है। सारा जीवन उसे स्त्री से रहित ही यापन करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को  ना तो कहीं मान सम्मान मिलता है ना ही कोई सहारा। श्रापित दोष के कारण सारा जीवन एकांत में ही बीत जाता है। 

* निवारण:- सर्वप्रथम महिलाओं का सम्मान ,भले ही वह माता,वहन या बुआ किसी रूप में हो। फिर माता कात्यायनी या मां गौरी की उपासना करनी चाहिए। राहु का जाप एवं शनि का दान करने से भी दोष शांत होगा। शुक्र को बलवान करने के लिए अष्टकोणीय चांदी का टुकड़ा धारण करें। शुक्र का रत्न धारण करने से भी अच्छा लाभ मिलेगा। व्यक्ति का जीवन सुखमय व्यतीत होगा।


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संत श्रापित दोष:-जब व्यक्ति किसी न किसी रूप में साधु संत अपमान कर देता है। तो जीवन कष्टमय हो जाता है । संपन्न होते हुए भी वह द्वार पर आए हुए साधु का अपमान करता है । साधु के मन को दुखाता है अपशब्द बोलता है अनुचित आरोप लगाता है तो ईश्वर इसे सहन नहीं कर सकते और व्यक्ति श्रापित हो जाता है ।  उस की कुंडली में शनि राहु की युति द्वादश भाव में हो जाती है। द्वादशेश पीड़ित हो कर निकृष्ट स्थानों पर बैठ कर द्वादश भाव को देखने से श्रापित दोष ज्यादा कष्टकारी हो जाता है। 

* लक्षण:- व्यक्ति का व्यवहार निकृष्ट हो जाता है। छोटे बड़े का स्थान भूल जाता है ।‌ अनाप-शनाप बोलता है ।किसी पूजा पाठ एवं ईश्वर की सत्ता को नहीं मानता । वह उन्मत्त होकर घूमता है।

* निवारण:- धार्मिक स्थान पर सफाई ,बड़ों का सत्कार करना चाहिए । पीली वस्तु का दान एवं गुरु मंत्र का जाप करना चाहिए । गुरु का रत्न धारण करने से भी दोष की शांति होती है । अगर संभव हो तो सत्संग में जाकर साधु की प्रशंसा एवं सेवा करनी चाहिए । ऐसा करने से व्यक्ति अपने जीवन का सुधार कर सकता है । उत्तम गति को प्राप्त कर सकता है और समाज में अच्छी मान प्रतिष्ठा बन सकता है ।


सारांश:-संसार में प्रत्येक व्यक्ति अपना मान सम्मान चाहता है परंतु जब हमारी कुंडली में निकृष्ट योग होते हैं तो व्यक्ति चाहते हुए भी कोई अच्छा कार्य नहीं कर सकता । इसके निवारण के लिए व्यक्ति को ईश्वर पर अटूट विश्वास करना होगा ।जो व्यक्ति माता-पिता एवं महिलाओं का सम्मान करते हैं वह संसार में मान भी प्राप्त करते हैं, प्रतिष्ठा बढ़ती है और अपने जीवन को सुखमय बना लेते हैं । सत्कर्म व्यक्ति के कुंडली में उत्पन्न कुयोगों को भी शांत कर देते हैं व्यक्ति अपने जीवन को अपने हिसाब से यापन कर सकता है । सुखी जीवन व्यतीत करने के लिए बड़ों का सत्कार एवं आशीर्वाद की आवश्यकता होती है । अगर व्यक्ति को शुभ आशीष मिल जाए तो उसका जीवन धन्य हो जाता है । कुंडली का विश्लेषण किसी विशेषज्ञ से करवाएं। और कुंडली में उपस्थित ऐसे कुयोगों को शांत करने के लिए आप अपनी कुंडली कार्यालय में भेज कर परामर्श का सकते हैं । धन्यवाद।

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