5 Simple Life-changing Remedies for Child's future

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दोस्तों जब व्यक्ति अपने जीवन में अच्छी सफलता पा लेता है ।‌ उसके पास अच्छा कारोबार होता है । शरीर से रिष्ट पुष्ट रहता है उसके बाद अपना करियर में अच्छी उन्नति प्राप्त कर के वह शादी करवाता है । जब शादी के बाद बच्चे होते हैं। तो बाल्यावस्था में अपने बच्चों के साथ अच्छे प्रेम प्यार से रहता है लेकिन जब बच्चे किशोर अवस्था की ओर प्रस्थान करते हैं तो व्यक्ति की चिंताओं में वृद्धि होती है ।  दोस्तों यह चिंता बच्चों के स्वास्थ्य , व्यवहार , शिक्षा  एवं कारोबार को लेकर उत्पन्न होती है । हमारे बच्चों का स्वस्थ्य कैसा रहेगा ।  कहीं वह कुसंगति में तो प्रवृत नहीं होंगे । कहीं उनकी शिक्षा अपूर्ण तो नहीं रहेगी । उनका करियर कैसा होगा आदि का विचार उसे व्यक्ति के मन में घूमता रहता है । जिसके निवारण के लिए वह नाना प्रकार के यत्न करता है ।  विशेषज्ञों की सलाह लेता है । कुंडली का विचार करवाता है। लेकिन फिर भी बच्चे किसी न किसी उलझन का शिकार हो जाते हैं । आज हम विचार करेंगे कि कैसे कुंडली के माध्यम से आप अपने बच्चों का भविष्य संभाल सकते हैं । ऐसी उलझन से निकलने के लिए मैं आपको पांच उपाय बताऊंगा जो इस प्रकार है ।

बच्चों का शारीरिक विकास:-

* दोस्तों हमारे शास्त्रों में शरीर सुख को सबसे उत्तम माना गया है जब शरीर का विकास पूर्ण होता है तो व्यक्ति हर कार्य को कुशलता से करता है। लेकिन जब बच्चे की सेहत ही ठीक ना हो शरीर ही उत्तम विकास को प्राप्त न हुआ हो तो उसके विकास में कमी आती है । इसका कुछ कारण तो सामाजिक परिस्थितियों है । जैसे कि आर्थिक तंगी के कारण कुपोषण, घर का वातावरण , माता पिता का व्यवहार आदि ! परंतु कुछ जन्म के समय ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है । जब जन्म के समय लग्नेश कमजोर होता है तो व्यक्ति का शारीरिक विकास पूरा नहीं होता ।! विघ्न के कारण :- जब लग्नेश निकृष्ट स्थानों  (6,8,12) पर बैठा हो तो भी शारीरिक विकास में कमी आती है। जब लग्न में क्रूर ग्रह विराजमान होते हैं तब भी बौद्धिक एवं मानसिक विकास में कमी करतें हैं। जब लग्न पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि होती है तब भी शारीरिक विकास में कमी आती है। इसलिए बच्चों के शारीरिक विकास को विकसित करने के लिए लग्न या लग्नेश को बलवान बनाना जरूरी है ।! आइये जानते हैं इस के उपाय :- अगर लग्नेश निकृष्ट स्थान पर बैठा है तो उसका जप करें । अगर लग्न पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि है तो दान करें। अगर लग्न या लग्नेश क्रूर ग्रहों से पीड़ित है तो जप और दान दोनों करने अनिवार्य हैं । लग्नेश को बलवान करने के लिए रत्न धारण कर सकते हैं।

बच्चों की शिक्षा:-
* दोस्तों सफल जीवन का आधार ज्ञान को कहा गया है अगर आपकी शिक्षा अच्छी है तो आप अच्छी उन्नति को प्राप्त कर सकते हैं । वैदिक ज्योतिष के अनुसार पंचम भाव को शिक्षा का भाव कहा गया है जब पंचमेश बलवान हो केंद्र या त्रिकोण में विराजमान हो तो बच्चे की शिक्षा उत्तम बनती है परन्तु जब बच्चे की कुंडली में पंचमेश कमजोर हो, नेष्ट स्थानों पर बैठा हो,या क्रूर ग्रहों से दृष्ट या युक्त हो तो बच्चे की शिक्षा में विघ्न उत्पन्न होतें हैं।! विघ्न के कारण :- जब लग्नेश कमजोर हो कर छठे घर में पंचमेश के साथ बैठा हो तो रोग, चिंता आदि के कारणों शिक्षा में कमी आती है। जब पंचमेश, धनेश दोनों द्वादश भाव में हो तो आर्थिक तंगी एवं खर्च के कारण शिक्षा में विघ्न उत्पन्न होता है। जबकि पंचमेश व अष्टमेश दोनों मिलकर 6,8,12 में बैठे हो तो कुसंग, क्रोध, प्रभुत्व एवं वैर विरोध कारण व्यक्ति की शिक्षा में विघ्न उत्पन्न होता है। ! आइये जानते हैं इस के उपाय :- जब पंचमेश या पंचम भाव पर क्रूर ग्रह की दृष्टि होती है तो उनका जप एवं दान करने से विद्या के विघ्न को दूर किया जा सकता है । जब पंचमेश कमजोर होता है तो रत्न धारण करने से उसे बलवान करना चाहिए । जब पंचम भाव पर सौम्या ग्रहों की दृष्टि हो तो बालक की शिक्षा उत्तम कही गई है । लग्नेश पंचमेश एवं नवमेश को बलवान करने के लिए जप एवं दान उत्तम साधन है इससे व्यक्ति की शिक्षा में अच्छी उन्नति के योग बनेंगे ।

बच्चों का संग:-
* दोस्तों बच्चों के विकास में संगति का प्रभाव अहम भूमिका निभाता है । जब बच्चों का संग अच्छे लोगों के साथ होता है तो बच्चे सद्गुणों से संपन्न होते है । सद्गुण ही बच्चों को अच्छे मार्ग से उन्नति की ओर लेकर जाते हैं । सत्संगति बच्चों की उन्नति का साधन बनती है । परंतु जब बच्चे कुसंग का सहारा लेते है तो बच्चे नीचे की ओर चलें जातें हैं ।  समाज में प्रतिष्ठा कम हो जाती है । अगर हम वैदिक ज्योतिष के अनुसार विचार करें तो तीसरे भाव से मित्रों का विचार किया जाता है । जब तृतीयेश बलवान होता है । तो बच्चे में साहस की वृद्धि होती है और मित्र भी अच्छे और प्रभावी होते हैं । जिसके कारण बच्चा व्यसनों से दूर रहता है और उन्नति को प्राप्त करता है।! विघ्न के कारण :-  जब तृतीयेश कमजोर होता है । तो बच्चा बुरे संग के कारण अवनति को प्राप्त करता है । जब तीसरे घर में सौम्य ग्रह बैठे हो और बल में भी कम हो तो बच्चे को साहस की कमी एवं मानसिक तनाव की प्राप्ति होती है जिस कारण बच्चा कुसंग में चला जाता है । कुसंग के प्रभाव से ना तो बच्चा अपने शरीर का विकास कर सकता है और ना ही कारोबार में उन्नति का सकता है । बेकार घूमने के कारण समाज उसे सम्मान नहीं देता । तृतीयेश पीड़ित होकर जब षष्ठेश से संबंध करता है तो बच्चा रोग और शत्रु के प्रहार से कुसंग में जाता है । वह बदनाम हो जाता है और उसका जीवन नर्क बन जाता है । जब तृतीयेश, अष्टमेश सम्बन्ध करता है तो मान प्रतिष्ठा नष्ट होने के कारण अपकीर्ति को प्राप्त करता है । जब तृतीयेश, द्वादशेश से कोई संबंध करता है तो बच्चा व्यसनों, खर्च एवं दूरस्थ होने से विनाश को न्योता देता है। जब तीसरे भाव पर छठे आठवें और बारहवें भाव के स्वामियों की दृष्टि या युति होती है तो बच्चे को सन्निपात ( तीनों दोषों रोग, शत्रु और खर्च ) से पीड़ित होना पड़ता है। कुसंग में बच्चा स्वयं का मान, घर की प्रतिष्ठा, समाज की मर्यादा को भूल जाता है । इसलिए बच्चा का जीवन कष्टमय हो जाता है। ! आइये जानते हैं इस के उपाय :-क्रूर ग्रहों की कुदृष्टि एवं युति के निवारण के लिए ग्रहों का जप एवं दान करना शास्त्रों में कल्याणकारी कहा गया है । तृतीयेश को बलवान करने के लिए उस ग्रह का रत्न धारण करें । धार्मिक स्थलों की सफाई एवं अतिथियों की सेवा, बड़ों का मान सम्मान व्यक्ति को सन्मार्ग की और प्रवृत करते हैं ।


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बच्चों का कारोबार एवं नौकरी :-
* दोस्तों जीवन को सफल बनाने के लिए कारोबार या नौकरी अनिवार्य है जब बच्चा अच्छी शिक्षा पाने के बाद भी अपने पैरों पर खड़ा नहीं होता तो समाज उसका अपमान करता है । हर माता-पिता चाहता है कि उसका बेटा अच्छी उन्नति को प्राप्त करें अच्छे कारोबार में जो नौकरी में प्रवृत्त हो परंतु शिक्षा की कमियों के कारण वह अपने कारोबार में अथवा नौकरी में सफलता नहीं पा सकते इसलिए समाज में मान प्राप्त करना भी कठिन हो जाता है । अगर हम ज्योतिष के अनुसार विचार करें तो वैदिक ज्योतिष में दशम भाव को कारोबार या नौकरी का कहा गया है जब दशम भाव का स्वामी बलवान होता है और दशम भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि होती है तो व्यक्ति को अच्छी नौकरी या व्यवसाय प्राप्त होती है ।! विघ्न के कारण :- जब दशमेश कमजोर हो और पाप ग्रहों से दृष्ट या युक्त हो तो व्यक्ति को लाख प्रयत्न करने पर भी अच्छी नौकरी या कारोबार की प्राप्ति नहीं होती । जब दशम भाव पर 3, 6, 8, 12 भावों के स्वामी की दृष्टि या युति हो तो व्यक्ति के कारोबार में कमी आती है । जब दशमेश केंद्रीय त्रिकोण में विराजमान हो तो व्यक्ति अच्छी उन्नति को प्राप्त करता है । क्रूर ग्रहों से पीड़ित होने पर व्यक्ति के मनोबल में कमी आती है और कारोबार में विघ्न उत्पन्न होता है । ! आइये जानते हैं इस के उपाय :- निवारण के लिए ग्रह का जाप एवं दान उचित फल देने वाला कहा गया है । जब दशमेश कमजोर होता है तो रत्न धारण करना एवं मां दुर्गा की उपासना अच्छी उन्नति को देने वाली सिद्ध होगी ।

सुखी जीवन:-
*दोस्तों हर माता-पिता चाहता है कि उसकी संतान का जीवन सुखमय हो । जब बच्चे को कष्ट आता है तो माता-पिता बहुत दुखी होते हैं । बच्चों के जीवन को सुखी बनाने के लिए नाना प्रकार के यत्न करते हैं परंतु जब कुंडली में लग्नेश, पंचमेश, दशमेश एवं भाग्येश कमजोर होते हैं । तो माता-पिता लाख चाहते हुए भी अपने संतान को ना तो अच्छी शिक्षा दे सकते हैं,ना भाग्य और ना ही अच्छा कारोबार या नौकरी दे सकते हैं। इसलिए किसी सुयोग्य ब्राह्मण से अपनी जन्म कुंडली का विचार करके अपने लग्नेश पंचमेश नवमेश दशमेश को बलवान करने के लिए उपाय करने चाहिए या आप हमारे कार्यालय से संपर्क भी कर सकते हैं । धन्यवाद।।

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