Kundli Yog
अक्सर लोग सोचते हैं कि अगर उनकी कुंडली में शुभ ग्रह—जैसे बृहस्पति, शुक्र, चंद्रमा या बुध—मज़बूत हैं, तो जीवन में हमेशा सुख-शांति और समृद्धि बनी रहेगी। परंतु जब विपरीत अनुभव सामने आते हैं, तो मन में यह प्रश्न उठता है: "जब मेरी कुंडली में शुभ ग्रह हैं, फिर अशुभ फल क्यों मिल रहे हैं?" यही रहस्य उजागर करता है कि ज्योतिष केवल ग्रहों की गणना नहीं, बल्कि उनकी परिस्थिति, दृष्टि, युति और गोचर का समग्र विज्ञान है। शुभ ग्रह भी कभी-कभी ऐसे योगों में फंस जाते हैं जहाँ वे अपना शुभत्व खो देते हैं और जीवन में कठिनाइयाँ देने लगते हैं। इस लेख में हम समझेंगे कि ऐसा क्यों होता है और कौन-कौन से कारण इसके लिए उत्तरदायी होते हैं।
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शुभ ग्रह अशुभ फल क्यों देते हैं? – गहन विवेचना
1. ग्रह की स्थिति और भाव का प्रभाव
शुभ ग्रह यदि त्रिक भावों (6वां, 8वां, 12वां) में स्थित हो तो वह अपने स्वाभाविक गुणों को खोकर उस भाव के अनुसार फल देने लगता है।
2. पाप ग्रहों की दृष्टि या युति
यदि किसी शुभ ग्रह पर शनि, राहु, केतु या मंगल की दृष्टि हो या वह इनके साथ युति में हो, तो उस ग्रह का शुभ फल प्रभावित होता है।
उदाहरण के लिए, यदि चंद्रमा पर राहु की दृष्टि हो तो व्यक्ति मानसिक रूप से बेचैन रहेगा, निर्णय गलत लेगा, चाहे चंद्रमा मजबूत क्यों न हो।
3. नीच राशियों में स्थिति
हर ग्रह की एक उच्च और एक नीच राशि होती है। जब कोई शुभ ग्रह अपनी नीच राशि में होता है तो वह कमजोर हो जाता है और शुभ फल देने में असमर्थ हो जाता है।
नीच ग्रहों के लिए नीचभंग योग राहत दे सकता है, परंतु वह भी अन्य योगों पर निर्भर करता है।
4. अंतरदशा और गोचर का प्रभाव
कई बार कोई ग्रह अपनी महादशा में अच्छा फल देता है, लेकिन उसी दौरान अगर उसकी अंतरदशा में पाप ग्रह का समय चल रहा हो या गोचर में वह अशुभ भाव से गुजर रहा हो, तो उसका फल अशुभ हो सकता है।
उदाहरण के लिए: शुक्र की महादशा में राहु की अंतरदशा चले और शुक्र बारहवें भाव में हो, तो व्यक्ति को आर्थिक हानि, दांपत्य जीवन में तनाव व मानसिक चिंता हो सकती है।
5. अधिपत्य दोष
यदि कोई शुभ ग्रह एक शुभ भाव और एक अशुभ भाव का स्वामी हो, तो उसे अधिपत्य दोष माना जाता है। ऐसे में ग्रह मिश्रित फल देता है, और जब अशुभ भाव की अधिकता हो, तो फल नकारात्मक हो सकते हैं।
6. कारक भाव विरोध या ग्रह विरोधाभास
यदि कोई ग्रह अपने ही कारक भाव का नाश करता है या उसके कारकत्व से विपरीत भूमिका निभा रहा हो, तो वह नकारात्मक प्रभाव देता है। जैसे कि शुक्र सप्तम भाव का कारक है। यदि वह इस भाव में राहु के साथ हो, तो विवाह संबंधी समस्याएं बढ़ सकती हैं।
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शास्त्रीय दृष्टिकोण से विश्लेषण
बृहस्पति को देवताओं का गुरु माना गया है, परंतु जब वह 6वें, 8वें या 12वें भाव में हो, तो ज्ञान की जगह भ्रम, गुरु-द्रोह या अंहकार भी दे सकता है। इसी प्रकार चंद्रमा, मन का कारक होकर भी अगर राहु से पीड़ित हो तो मानसिक रोग, भय या आत्मविश्वास की कमी देगा।
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प्रभावों को कैसे करें कम? – उपाय
1. मंत्र जाप – ग्रह से संबंधित वैदिक मंत्रों का जाप करें।
2. दान – शुभ ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान करें (जैसे बृहस्पति के लिए पीली चीजें, चंद्रमा के लिए चावल या दूध)।
3. रत्न धारण – किसी योग्य आचार्य की सलाह से ग्रहों के रत्न धारण करें।
4. व्रत व अनुष्ठान – ग्रह शांतिव्रत और विशेष पूजन से भी राहत संभव है।
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प्रश्न-उत्तर (FAQ)
1. क्या शुभ ग्रह कभी भी अशुभ फल नहीं देते?
नहीं, अगर वे अशुभ भाव में हों या पाप ग्रहों से ग्रसित हों, तो अशुभ फल संभव है।
2. कुंडली में बृहस्पति अच्छा हो, फिर भी कष्ट क्यों आते हैं?
हो सकता है वह नीच का हो, पाप दृष्टि हो या उसकी दशा में अन्य ग्रह बाधा डाल रहे हों।
3. क्या गोचर के अनुसार भी शुभ ग्रह नकारात्मक हो सकते हैं?
हाँ, जैसे ही कोई शुभ ग्रह अशुभ स्थान पर गोचर करता है, उसके फल भी प्रभावित होते हैं।
4. क्या उपायों से ग्रहों का अशुभ प्रभाव टाला जा सकता है?
बहुत हद तक हाँ—विशेष पूजा, मंत्र और रत्नों से राहत संभव है।
5. क्या हर किसी के लिए एक ही उपाय कारगर होता है?
नहीं, उपाय व्यक्ति की कुंडली और दशा के अनुसार बदलते हैं।
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*निष्कर्ष*
ज्योतिष केवल शुभ और अशुभ ग्रहों की गणना नहीं है, बल्कि यह एक गूढ़ विज्ञान है जो ग्रहों की दशा, दिशा, दृष्टि और दशमांश तक का विश्लेषण करता है। शुभ ग्रह भी परिस्थितिवश अशुभ फल दे सकते हैं और यही इसे अधिक जटिल और रोचक बनाता है। इसलिए जीवन में यदि समस्याएं हों, तो केवल ग्रहों के नाम देखकर निष्कर्ष न निकालें—बल्कि किसी विद्वान ज्योतिषाचार्य से परामर्श अवश्य लें।
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